Friday, 2 September 2011

आज जो तुम साथ नहीं ...

है वही कॉलेज की कैंटीन और है वही चाय ...
पर आज  उसकी मिठास थोड़ी कम है..
है वही कॉलेज के दोस्त और है वही शरारतें
पर आज उन् में मस्ती थोड़ी कम है...
बेक गार्डेन आज भी उतना रोमांटिक लगता है
पर न जाने आज फोलों को खिलना नामंजूर क्यूँ है...
छुटीओं   के बाद खुला है कॉलेज आज
है वही चेहल पहेल
पर न जाने आजज भीड़ में ख़ामोशी क्यूँ है...
शायद चाय की मिठास कम न होती
जो आज तुम साथ होती..
शायद उन् शरारतों  में  मस्ती  कम  न  होती
जो  आज  साथ  तुम  होती ....
फूल भी खिलते.. ख़ामोशी न डोलती,
जो आज तुम साथ होती...
काश १४ फेब्रुरारी की दुबहर में सिग्नल पे तुम्हारा हाथ न छोड़ा होता
चार कदमो के फसलों ने सफ़ेद दुपट्टे को तुम्हारे लाल सा न रांगा होता
अकेला सा अज्ज थोडा महसूस करता हूँ
वक़्त का भरोसा नहीं है यह फलसफा महसूस करता हूँ
रुकता तो कुछ नहीं है ज़िन्दगी में
पर कल्पनाओं से भरा था तुमने जिसे वो जीवन थमा सा महसूस करता हूँ
बारिश की रिम झिम भाति नहीं..
क्यूंकि तुम मुस्कुराके मेरी बाज़ुओं में समाती नहीं..
है वही कॉलेज की कैंटीन और है वही चाय ...
पर आज  उसकी मिठास थोड़ी कम है..
है वही कॉलेज के दोस्त और है वही शरारतें
पर आज उन् में मस्ती थोड़ी कम है...

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